दूसरों के मन की बात जान लेना ही टेलीपैथी कहलाता है। बहुत से लोग यह दावा करते हैं कि उन्होंने तंत्र-मंत्र, दिव्य शक्ति अथवा किसी चमत्कारी शक्ति के द्वारा इस दिव्य ज्ञान को प्राप्त कर लिया है।
लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि टेलीपैथी जैसी कोई भी शक्ति नहीं होती है, यह सिर्फ एक प्रकार का भ्रम है, जिसे दिखाकर लोग अक्सर दूसरों को बेवकूफ बनाते रहते हैं। ऐसी तमाम विधियाँ मौजूद हैं, जिनके द्वारा यह क्रिया सम्पन्न की जाती है। तो आइए आज आपको बताते हैं टेलीपैथी की एक आसान और प्रभावी विधि।
टेलीपैथी के प्रदर्शन के लिए आप सबसे पहले कुछ दर्शकों को जमा करें, फिर उनमें से चार लोगों को अपने पास बुलाएँ। उन चारों व्यक्तियों में आप एक को किसी महान भारतीय वैज्ञानिक का नाम सोचने के लिए कहें। जब वह सोच ले तो उस की आँखों में आँखें डालकर ऐसे देखें जैसे आप उसके मन की बात पढ़ रहे हों। इसके बाद एक पर्ची पर वैज्ञानिक का नाम लिखकर पर्ची को गिलास में डाल दें। इसी तरह शेष तीनों दर्शकों से उनकी मनपसंद फिल्म, शहर और फल के बारे में सोचने के लिए कहें। उन चारों दर्शकों के आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रहेगी जब आप उनके मन की बातें बिना बताये ही जान लेंगे।
टेलीपैथी की ट्रिक
यह कैसे संभव होगा? तो आइए बताते हैं आपको इसका तरीका। इस जादू को करने से पहले जो सावधानी बरतनी है वह यह कि जिन चार लोगों को आप बुलाएँ, उसमें से एक व्यक्ति आपका विश्वासपात्र होना चाहिए। अपने जादू को शुरू करने के पहले आप उसे बता दें कि भारतीय वैज्ञानिक का नाम श्रीनिवास रामानुसन ही बताना है। बस हो गयी जादू की तैयारी। लेकिन हाँ एक बात और। अपना जादू दिखाते समय आपको यह छोटी सी बात ध्यान रखनी है कि आपको अपने उस विश्वासपात्र व्यक्ति से सबसे बाद में पूछना है।
अब शुरू करें जादू
चारों व्यक्तियों को स्टेज पर बुलाने के बाद अपने विश्वासपात्र को छोड़ कर किसी अन्य व्यक्ति से अपनी मनपसंद फिल्म का नाम सोचने के लिए कहें। उस व्यक्ति को कुछ क्षण सोचने का अवसर दें और फिर उसकी आँखों में ध्यान से देखें, जैसे आप उसके मन की बात पढ़ने का प्रयत्न कर रहे हों। उसके बाद विजेता की तरह मुस्कराएँ, जैसे आपने उस व्यक्ति की मनचाही फिल्म को नाम जान लिया हो। अब आप एक पर्ची उठाएँ और उस फिल्म का नाम लिखने की बात कह कर 'श्रीनिवास रामानुजन' लिखकर एक डब्बे में डाल दें। पर्ची को डालने के बाद आप उस व्यक्ति से अपनी फिल्म का नाम बताने को कहें। मान लेते हैं कि उसने 'शोले' का नाम बताया। आप उसे धन्यवाद दें और फिर दूसरे व्यक्ति से सम्बोधित हों।
दूसरे व्यक्ति से अपने मनचाहे फल के बारे में सोचने के लिए कहें। उसे कुछ समय देने के बाद आप उसकी आँखों में झाँकें और फिर एक पर्ची पर 'शोले' लिखकर पर्ची को बिना दिखाए यह बताएँ कि आपने इस व्यक्ति के मनचाहे फल के बारे में पर्ची पर लिख दिया है। उसके बाद पर्ची को डब्बे में डाल दें और उस व्यक्ति से अपने मनचाहे फल का नाम बताने को कहें। अब मान लीजिए कि उसने फल का नाम 'आम' बताया। उसके बाद आप उस व्यक्ति को धन्यवाद दें और तीसरे व्यक्ति के पास पहुँचें।
तीसरे व्यक्ति से उसके पसंदीदा शहर के बारे में सोचने के लिए कहें और पूर्व की भांति अभिनय करते हुए पर्ची पर उसके पसंदीदा शहर के बारे में लिखने को कहकर 'आम' लिखें और डब्बे में डाल दें। उसके बाद तीसरे व्यक्ति से पसंदीदा शहर का नाम बताने को कहें। मान लीजिए उसने 'दिल्ली' का नाम लिया। नाम जानने के बाद आप उसका शुक्रिया अदा करें और अपने राजदार व्यक्ति के पास पहुँच जाएँ।
चौथे व्यक्ति यानी अपने राजदार से आप किसी भारतीय वैज्ञानिक के बारे में सोचने के लिए कहें। जाहिर सी बात है कि वह 'श्रीनिवास रामानुजन' के बारे में ही सोचेगा। जब आप उसकी आँखों में झाँक लें, तब आप चौथे व्यक्ति द्वारा सोचे जा रहे वैज्ञानिक का नाम लिखने की बात कहकर तीसरे व्यक्ति द्वारा बताए गए शहर 'दिल्ली' का नाम लिखें और डब्बे में डाल दें। उसके बाद उस व्यक्ति से भी वैज्ञानिक का नाम बताने के लिए कह दें।
बस हो गया आपका जादू पूरा। अब दर्शकों से किसी व्य
क्ति को बुलाएँ और डब्बे में डाली गयी चारों पर्चियों को निकाल कर उनमें लिखे नाम पढ़ने को कहें। जब दर्शक वही नाम सुनेंगे, तो आपके जादू की प्रशंसा किये बिना नहीं रह पाएँगे।
लेकिन रूकिए, अगर आप दर्शकों की प्रशंसा सुनकर फूलकर कुप्पा हो जाते हैं और धन्यवाद कहकर ही रह जाते हैं, तो यह चीटिंग है। आप दर्शकों के साफ-साफ बताइए कि आपने यह तथाकथित जादू कैसे सम्पन्न किया। क्योंकि सच तो यही है कि दुनिया में जादू नाम की कोई चीज होती ही नहीं। होती है तो सिर्फ हाथ की सफाई और समझ का धोखा है।
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